तरुण अरुण तो नवल प्रात में ही दिखलाई पड़ता लाल- इसीलिए मध्याह्न में अवनि को झुलसाती उसकी ज्वाल! मानव किन्तु तरुण शिशु को ही दबना-झुकना सिखला कर आशा करते हैं कि युवक का ऊँचा उठा रहेगा भाल! लाहौर, 4 अप्रैल, 1934