यह कोई धाम निराला
जहाँ मैं देखूँ उज्ज्वल अँधियारा ।
यहाँ यह चेतनामय दृष्टि मेरी
आश्चर्य से हो रही अचेत
यहाँ शब्द नहीं, सुर नहीं
परंतु कानों में संकेत ।
मैं कब रहूँ नींद में, कब जागूँ
कुछ ना जानूँ ।
जैसे कोई महासागर
और तरंगहीन तरंग
किसी चेहरे की कोई झाँकी नहीं,
और तब भी मैं एकाकी नहीं,
मेरे हाथों में पतवार नहीं
और तब भी मैं नाव चलाऊँ ।
मूल गुजराती भाषा से अनुवाद : क्रान्ति