हर चीज़ पर चढ़ी है एक धुन्ध
तुम्हारे सच पर मेरे झूठ में भी
वह सच जिसे तुम कविता में
कह कर मुक्त हुए
वह झूठ जिसकी ओट में
छिपाए फिरता हूँ अपना चेहरा
एक ही है ।
दोनों ही एक अलग-अलग ढाल हैं
हमारे लिए ।
हर चीज़ पर चढ़ी है एक धुन्ध
तुम्हारे सच पर मेरे झूठ में भी
वह सच जिसे तुम कविता में
कह कर मुक्त हुए
वह झूठ जिसकी ओट में
छिपाए फिरता हूँ अपना चेहरा
एक ही है ।
दोनों ही एक अलग-अलग ढाल हैं
हमारे लिए ।