धूप धूपाया
यह दिन भाया,
जैसे हो मेरी ही काया-
कविताओं ने
जिसे बनाया,
जिसको लय से गाया!
शाम हुए भी
मेरी शाम न होगी!
मेरी काया
कभी अनाम न होगी!
रचनाकाल: १७-१०-१९९१
धूप धूपाया
यह दिन भाया,
जैसे हो मेरी ही काया-
कविताओं ने
जिसे बनाया,
जिसको लय से गाया!
शाम हुए भी
मेरी शाम न होगी!
मेरी काया
कभी अनाम न होगी!
रचनाकाल: १७-१०-१९९१