अचानक
आँख-मिचौनी खेलते
छिप जाते हो
इस खंडहर-महल में
सांय-सांय हवा-सी
भटकती हूँ तुम्हारी तलाश में
सहसा खुलता है कोई किवाड़
लिपट जाती मुझसे
गुनगुनी धूप
ऐसा ही है
तुम्हारा रूप?
अचानक
आँख-मिचौनी खेलते
छिप जाते हो
इस खंडहर-महल में
सांय-सांय हवा-सी
भटकती हूँ तुम्हारी तलाश में
सहसा खुलता है कोई किवाड़
लिपट जाती मुझसे
गुनगुनी धूप
ऐसा ही है
तुम्हारा रूप?