धूप थपेड़े मारती है थप्-थप्
केले के हातों से पातों से
केले के थंबों पर
खसर-खसर एक चिकनाहट
हवा में मक्खन-सा घोलती है
नींद-भरी आलस की भोर का
कुंज गदराया है
यौवन के सपनों से
अभी अनजान मानो
नावें उछलती हैं लहरों में बादलों के
हलकी हलकी मगन मगन
कि सीटियाँ-सी व्योम बजाता है चारों ओर
बेमानी तानें-सी आप ही आप गुनगुनाता है
चुंबन की मीठी पुचकारियाँ
खिला रहीं कलियों को फूलों को हँसा रहीं
घाँसों को गुदगुदियों न्हिला रहीं
नाच हैं खिल् खिल् खिल्
कुसुमों-से चरनों का लोच लिये
थिरक रही हैं
भीनी भीनी
सुगंधियाँ
क्यों न उसाँसें भरे
धरती का हिया
धूप की चुस्कियाँ
पिये जाय, आँख मीच, सोनीली माटी
कन्-कन् जिये जाय
थप्-थप् केले के पातों पर हातों से
हाथ् दिये जाय
थप थप्...