मन मेरा शाम के धुँधलके में
ढूँढ़ रहा है कोई नाम
टहनी से फिसलकर हवाएँ
लजा गईं आँगन में आकर
टूट गई धूप पारदर्शी
चिड़ियों को व्याकरण सिखाकर
होते ही गहरा आकाश
सुधियाये कितने ही काम
मन मेरा शाम के धुँधलके में
ढूँढ़ रहा है कोई नाम
टहनी से फिसलकर हवाएँ
लजा गईं आँगन में आकर
टूट गई धूप पारदर्शी
चिड़ियों को व्याकरण सिखाकर
होते ही गहरा आकाश
सुधियाये कितने ही काम