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धूम / विमल राजस्थानी

पवन ने झूम, चमन को चूम, मचा दी आज गजब की धूम

1
तरूवरों ने आलिंगन दिया
पवन लहराया सुध-बुध भूल
निकुंजों ने झोंकों में झूम
बिछाये झुक-झुक पथ में फूल

2
बिखेरी पात-पात पर शर्म
कली ने हौले घूँघट खोल
वृन्त ने उन्हें झुलाया आज
पवन की झकझोरों में डोल
मोतियों जड़ी दूब की सेज पवन ने ली अधरों से चूम
पवन ने झूम, चमन को चूम, मचा दी आज गजब की धूम

3
विहग उड़ चले कुंज से कुंज
तितलियाँ उड़ीं डाल से डाल
भ्रमर गुनगुना उठे उद्भ्रान्त
चमन का कन-कन हुआ निहाल

4
खोजता फिरा बावला पवन
दिवा-निशि कुंज-कंुज को चीर
खोज थक चला, निरख पाया न
किंतु अपने प्रिय की तस्वीर
खोज की इस हलचल में गये बिखर शत-शत वन-शिशु मासूम
पवन ने झूम, चमन को चूम, मचा दी आज गजब की धूम

5
पवन की झेल-झेल झकझोर
उड़ चले पात, उड़े चले फूल
पवन के पाँव हुए गतिमान
उड़ चली चूम चमन को धूल

6
धूल उड़ चली गगन की ओर
करों में भरे फूल-फल-पात
जहाँ किरणों का झूला डाल
कभी झूली तारों की रात
धूल ने हँस, बरसाये फूल गगन-वन के कुंजों में घूम
पवन ने झूम, चमन को चूम, मचा दी आज गजब की धूम

7
हुई रिमझिम-रिमझिम बरसात
कि बरसी जीवन की रस-धार
पवन ने दिया कि तोड़-बिखेर
मोतियों का चमकीला हार

8
कि घन-परियों के कुंतल खुले
कुसुम जो गुँथे हुए थे, झरे
बिखर उन नभ-कुसुमों ने आज
फूल-पातों के दोने भरे
मुस्कुराया दिन, रोयी रात, पवन-वन में लहराया झूम
पवन ने झूम, चमन को चूम, मचा दी आज गजब की धूम