नई सदी के ख़ुदाओ
ज़रा ठहर जाओ
गुज़श्ता साल
मेरा पैरहन बनी थी आग
मैं संगसार हुआ था
गुज़श्ता साल
मेरा सर उठा था नेज़े पर
निशानज़द थीं
मेरी हक़-कलामियाँ
अक्सर
हदफ़ बनी थी क़लम
गुज़श्ता साल
मेरी रहगुज़ार सूनी थी
मेरे रफ़ीक
मेरी सोहबतों से
ख़ायफ़ थे
मैं अपनी बे-वतनी का
शिकार ठहरा था
मैं बे-अमाँ था
ख़जल था
शिकस्ता रुह भी था
मैं तुंद-व-तेज़ हवाओं के
इंतेशार में था
मैं ख़ाक-व-ख़ून की वादी में
कारज़ार में था
गुज़श्ता साल
अलमनाकियों के मौसम में
मेरे लबों पे
किसी के
बरहना ख़्वाब की
बेताबियों का साया था
नई सदी के ख़ुदाओ
मुझे बताओ ज़रा
नई सदी के मह-व-साल
साथ देंगे ना?
मेरे लबों पे
किसी के
बरहना ख़्वाब की
बेताबियाँ रहेंगी ना?
शिकस्ता रुह की
परछाइयाँ रहेंगी ना?
शबे अलम की
सियह बख़्तियाँ रहेंगी ना?
नई सदी के ख़ुदाओ
मुझे बताओ ज़रा