Last modified on 21 मार्च 2015, at 15:14

नचारी / चन्द्रमणि

पूजब झाड़ीखंड महादेव
आनन्दित मोर हैत जिया
भाल चन्द्रमा जटामे गंगा
बाम जनिक शैलेष धिया।
अम्बर बाघम्बर त्रिषूल कर
गरदनिमे साँपक माला
पीउने सदिखन मस्त सदाषिव
ध्यानमे डूबल मतवाला
कविता भाव भरल जौं भक्तक
नांचि उठय डमरूवाला
भक्तहि केर कल्याणक हित षिव
पीबि गेला अपनहि हाला। भाल.....
दुर्गम पथ निषि घोर अन्हरिया
वा संतप्त को माटिक कण
क्लेष सहब पर आष ने छोड़ब
रटव नाम षिव केर छन-छन
युगल चरण अभिलाषी ई मन
पूजत कहि हर-हर बम-बम
आस पुरत मम युग-युग केर आ
‘चन्द्रमणि‘क नचतैक हिया। भाल....