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नज़्म / हरकीरत हकीर

पता है
मैं ख़त नहीं हूँ
ख़त होती तो कोई पढता
कोई सहेज कर रखता …
मैं तो नज़्म हूँ
जिसे हर कोई पढता तो है
पर कोई सहेजता नहीं ….