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नदी मुस्कुराई / संजय शाण्डिल्य

नदी,
क्या हो तुम

माँ हो या बहन
बेटी हो
या दोस्त हो मेरी

घर के बारे में सोचता हूँ
और सोचने लगता हूँ
तुम्हारे बारे में
परिवार के बारे में विचारता हूँ
जेहन में तुम्हारा भी ख़याल आता है
देश का ध्यान करता
तो पहले
तुम्हारा चित्र उभरता है
मन के मानचित्र पर
जीवन के रूप में
तुम्हीं सामने आती हो
मृत्यु के बाद
तुम्हारी ही गोद
अन्तिम सत्य लगती है

नदी, क्या हो तुम
कि सारे रास्ते
तुम्हीं तक जाते हैं विचारों के

नदी मुस्कुराई
और बोली धीरे से
इतने धीरे से
कि केवल मैं सुन सकता था
उसकी आवाज
उसकी मुस्कुराहट
केवल मैं देख सकता था

उसने वेग-स्वर में कहा —
तुम ठीक समझते हो, कवि !
मैं स्त्री हूँ, सिर्फ स्त्री
जो विचारों में मिलती है प्रायः
या रास्तों में ...