उम्हें वह देती है निकालकर
अपनी रगों से ख़ून
पोंछती है उनके हताहत शरीर
साँसों से करती है उनका मरहम
दूसरे कमरे में बिस्तर पर
निकाली जा रही है उसके एक घायल
सम्बन्धी की जान
सिहर उठता है उसका रोम-रोम
पुलिस को मिलता है चार दिनों के बाद
अस्पताल की सड़क पर पड़ा
उसका मथा गया शव
खुली थीं जिसकी आँखें
बीमारों का जैसे पूछती हुईं हाल