घोर भयावह
मध्य रात्रि में,
दुनियादारी के प्रपंचों से
सहमी हुई;
छोटी सी
"नाइटिंगल";
हर-रोज
धीरे-धीरे
तोड़ती है अपना दम...
कूकने के बजाय,
बेतहाशा
सिसकती है,
उड़ेल देती है
अपना असहनीय दर्द
कू कू कू के स्वर में;
कहती है
दुनिया
जिसे
"गीत"...