नामविश्वास-6
(75)
सोच-संकटनि सोचु संकटु परत , जर,
जरत, प्रभाउ नाम ललित ललामको।
बूड़िऔ तरति बिगरीऔ सुधरति बात,
होत देखि दाहिनो सुभाउ बिधि बामको।।
भागत अभागु, अनुरागत बिरागु, भागु,
जागत आलसि तुलसीहू-से निकामको।
धाई धारि फिरिकै गोहारि हितकारी होति,
आई मीचु मिटति जपत रामनामको।।
(76)
आँधरो अधम जड़ जाजरो जराँ जवनु
सूकरकें सावक ढकाँ ढकेल्यो मगमें ।
गिरो हिएँ हहरि ‘हराम हो, हराम हन्यो’,
हाय! हाय! करत परीगो कालफगमें।।
‘तुलसी’ बिसोकु ह्वै त्रिलोकपतिलोक गयो,
नामके प्रताप, बात बिदित है जगमें।
सोई रामनामु जो सनेहसों जपत जनु,
ताकी महिमा क्यों कही है जाति अगमें।।