Last modified on 8 मई 2011, at 10:55

नामविश्वास / तुलसीदास/ पृष्ठ 4


नामविश्वास-4

(71)

जोगु न बिरागु , जप, जाग ,तप, त्यागु ,
ब्रत, तीरथ न धर्म जानौं ,बेदबिधि किमि है।

    तुलसी-सो पोच न भयो है , नहि ह्वैहै कहूँ,
   सोचैं सब, याके अघ कैसे प्रभु छमिहैं।

मेरें तौ न डरू, रघुबीर! सुनौ , साँची कहौं ,
खल अनखैहैं तुम्हैं, सज्जन न गमिहैं।

    भले सुकृतीके संग मोहि तुलाँ तौलिए तौ,
    नामकेें प्रसाद भारू मेरी ओर नामिहैं।।

(72)

जाति के, सुजाति के, कुजाति के पेटागि बस,
खाए टूक सबके, बिदित बात दूनीं सों।

    मानस-बचन-कायँ किए पाप सतिभायँ,
    रामनामको प्रभाउ, पाउ,महिमा, प्रतापु,
    तुलसी-सो जग मनिअत महामुनी-सो।

अतिहीं अभागो, अनुरागत न रामपद,
मूढ़ एतो बड़ो अचिरिजु देखि-सुनी सो।।