Last modified on 24 जनवरी 2009, at 21:14

निज इन्द्रनीलमणि-सा श्यामल कर में ले उत्तरीय-कोना / प्रेम नारायण 'पंकिल'

 
निज इन्द्रनीलमणि-सा श्यामल कर में ले उत्तरीय-कोना ।
सहला मेरा शरदिन्दु भाल जाने क्या-क्या करते टोना ।
था गूंथ रहा नीलाम्बर में चन्द्रमा तारकों की माला ।
जाने क्या-क्या तुमने प्रियतम! मेरे कानों में कह डाला ।
आवरण-स्रस्त प्रज्ज्वलित अरुण किसलय समान कोमल काया।
मृदु पल्लव-दल-रमणीय-पाणि-तल से तुमने प्रिय! सहलाया।
जल-कढ़ी मीन-सी तड़प रही बावरिया बरसाने वाली -
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवनवन के वनमाली ॥41॥