Last modified on 31 जनवरी 2010, at 12:07

निज स्वदेश ही / श्रीधर पाठक

निज स्वदेश ही एक सर्व-पर ब्रह्म-लोक है
निज स्वदेश ही एक सर्व-पर अमर-ओक है
निज स्वदेश विज्ञान-ज्ञान-आनंद-धाम है
निज स्वदेश ही भुवि त्रिलोक-शोभाभिराम है
सो निज स्वदेश का, सर्व विधि, प्रियवर, आराधन करो
अविरत-सेवा-सन्नद्ध हो सब विधि सुख-साधन करो