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निमकहराम / अरुण हरलीवाल

जिनगीभर
बहइली हम
अप्पन देह के पसेना
इहे माटी,
इहे खेत में...
कि गेल तोहर पेट में,
मिलल तोहर खून में
नून हम्मर देह के।
लेकिन,
तूँ कइलऽ निमकहरामी--
एकेक दाना
धरती माय के,
हम्मर कमाय के
सँइत लेलऽ
तूँ अप्पन कोठी में, भाँड़ी में,
अउ एने
जाला लगल
हमरा घर हाँड़ी में।
बाबू!
हमरा ‘निमकहराम’ मत कहऽ।
निमकहराम हम नइँ ही,
तूँ हऽ, तूँ हऽ...
तूँ ही हऽ निमकहराम।