अविरल झर रहा निर्झर
पर पसीजी ना शिला
यह मिला जीवन शेष !
निज पल गिन रहा हंस - रो ।
’नहीं’ या ’हाँ’ सदैव अशेष !!
तरु-दल बोलता मर्-मर् ।
अविरल झर रहा निर्झर
पर पसीजी ना शिला
यह मिला जीवन शेष !
निज पल गिन रहा हंस - रो ।
’नहीं’ या ’हाँ’ सदैव अशेष !!
तरु-दल बोलता मर्-मर् ।