Last modified on 10 फ़रवरी 2011, at 18:40

निर्मल / दिनेश कुमार शुक्ल

मैं पलाश की अग्नि
मुझे तुम मत छू लेना

रंग
लाल-नीला-पीला कैसा भी हो
रंगों की हिंसा
नहीं झेल पायेगा निर्मल रूप तुम्हारा

तुम तो आत्मा की सुगंध हो