अपनत्व की छननी में सैकड़ों बार तुमको छाना था
बारहा ग़लतियाँ निकलीं मगर तुम्हें अपना माना था
हजारों अच्छाईयों पर एक ग़लती मेरी पड़ गई भारी
हालांकि तुम साथी न थे फ़ायदा तुम्हारा निशाना था
रिश्ते के छज्जों पर खुदगर्ज़ियों के बुने हुए जाले थे
हित साधना ही था तुम्हारा लक्ष्य रिश्ता तो बहाना था।