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नींद-4 / प्रदीप जिलवाने

कभी नींद आदमी को उठाकर
इतिहास के कूड़ेदान में फेंक देती है
तो कभी छोड़ आती है
भविष्य की अंतहीन संकीर्ण गलियों में।
जहाँ से लौटता है आदमी पसीने-पसीने
एक चौंक या बड़ी शर्म के साथ
अपने चेहरे पर महसूसता है
उभर आई विकृतियाँ
जो समय अपने चेहरे से उतार
उसके चेहरे पर चस्पा कर देता है धोखे से।

नींद के बारे में
कई तरह के सच और अफवाहों के बीच
एक सच यह भी कि नींद जरूरी है
लेकिन दोस्त
नींद में होना एक बड़ी ‘रिस्क’ है
खासकर इस दौर में।