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नीलकंठा / गीता शर्मा बित्थारिया

पता है कि मुझे
जन्मजात
बहुत जुझारू होती हैं स्त्रियां
जो कोख, घर, और समाज
उन्हें जन्म से पूर्व ही
रखता है
एक तिरस्कृत भाव
पालता है
विकृत सोच के साथ
पोषता है
एक अस्वीकृति भाव
उनके पृथक अस्तित्व के लिए

वो उन सबसे
मुकाबला करती हैं
लेती हैं जन्म
फिर जीती हैं एक जीवन
जैसे मौत के कुंए में
चला रही हो कोई गाड़ी
बड़ी बहादुर होती हैं
ये स्त्रियां

बड़ी बहादुर होती हैं
वे स्त्रियां
जो न्याय की आस में,वर्षों वर्ष लगा रही होती हैं अदालतों के चक्कर
पर भयाक्रांत हो समझौता नहीं करती

बड़ी बहादुर होती हैं
वे स्त्रियां
जो किसी सिरफिरे आशिक के
एकतरफा प्रेम को ठुकरा देती है
उसके हाथ के एसिड से डरती नहीं है

बड़ी बहादुर होती हैं
वे स्त्रियां
जो घर के पुरुष के हाथों पिटने के बाद भी
उसे हल्दी वाला दूध का गिलास दे आती हैं
चुपचाप

बड़ी बहादुर होती हैं
वे स्त्रियां
जो लाख मना करने पर भी
चुनती हैं दुर्गम जोखिम भरी राहें
पड़ जाएं चाहे पैरों में छाले पर कराहती नहीं है

बड़ी बहादुर होती हैं
वे स्त्रियां
जो सीमा पर तैनात बेटे का संदूक लगाती हैं
जानती हैं डरती हैं उस अनहोनी के अनचाहे डर से
पर उसे कसमें देकर रोकती नहीं है

बड़ी बहादुर होती हैं
वे स्त्रियां
जो शहीद हुए पति की वर्दी पहन कर सो जाती हैं
क्योंकि वो बहादुर फौजी से प्रेम करती हैं
इसलिए सबके सामने रोती नहीं है

बड़ी बहादुर होती हैं
वे स्त्रियां
जो घर बचाने की जिद में उस चार दिवारी में
बिन प्रेम के अपना जीवन खपा देती हैं
पर थकती नहीं है

बड़ी बहादुर होती हैं
ये स्त्रियां
जो अपना वैधव्य,परित्यक्त,एकाकी जीवन
अमावस्या के चांद सा काट लेती हैं
पर चमकने को किसी सूरज से उधार की रोशनी मांगती नहीं हैं

बड़ी बहादुर होती हैं
ये स्त्रियां
जो अपने पति के पूर्व प्रेम का सिरहाना लगा लेती हैं
भिगोती रहती हैं उसे अपने सूने आंसूओं से
पर अधूरे प्रेम की व्यथा मां को बताती नहीं है

बड़ी बहादुर होती हैं
ये स्त्रियां
जो अपमान को विष की तरह घूंट घूंट पीती हैं
पर अपना नील कंठ किसी को दिखाती नहीं हैं

बड़ी बहादुर होती हैं
ये स्त्रियां
जो सदियों पुराने कवच पहन कर युद्धरत रहती हैं
घायल देह को ढकती हैं अपने स्वाभिमान से
पर कुरुक्षेत्र से पलायन कर भागती नहीं हैं

बड़ी बहादुर होती हैं
ये स्त्रियां
जिन्हें पता होते हैं सफलता पाने के छोटे वैकल्पिक रास्ते
पर वो समझौतों की सरल सीधी राह का चुनती नहीं हैं

बड़ी बहादुर होती हैं
ये स्त्रियां
जो लाख वजह हो घर छोड़ने की
पर सिर्फ एक वजह की खूंटी पर
अपना जीवन टांग देती हैं
यशोदा बनी रहती हैं
पर सिद्धार्थ की तरह घर आंगन छोड़ती नहीं हैं

बड़ी बहादुर होती हैं
ये स्त्रियां
जिन्हें लुभाता है सहज स्वर्ण का आकर्षण
पर मिले रहने को चाहे सोने की लंका भी
रावण के अनैतिक प्रस्ताव को स्वीकारती नहीं हैं

बड़ी बहादुर होती हैं
ये स्त्रियां
जो सहज विसार देती हैं विवाह पूर्व का प्रेम
चाहने लगती हैं नियति ने किया है जो अपरिचित गठजोड़
पर सप्तपदी की साक्षी पावन अग्नि को कभी लजाती नहीं हैं

नीलकंठा स्त्रियां
छुपाती रहती हैं अपनी पीड़ा अपनी देह सी
अपने दुखों का नग्न प्रदर्शन करने से बचती बचाती
अपने घाव किसी को यूंही दिखाती नहीं हैं