रस चाट चुका लघु जीवन का,
पर लालच हा न मिटा मन का।
गत शैशव उद्धत ऊल गया, उमगा नव यौवन फूल गया,
उपजाय जरा तन झूल गया, अटका लटका सटकापन का।
कुल में सविलास विहार किये, अनुकूल घने परिवार किये,
विधि के विपरीत विचार किये, धर ध्यान वधू-वसुधा-धन का।
पिछले अपराध पछाड़ रहे, अब के अघ, दोष दहाड़ रहे,
उर दुःख अनागत फाड़ रहे, भभका भय शो-हुताशन का।
रच ढोंग प्रपंच पसार चुका, सब ठौर फिरा झख मार चुका,
शठ ‘शंकर’ साहस हार चुका, अब तो रट ना निरंजन का।