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पञ्च तत्वों के स्कंध / ईहातीत क्षण / मृदुल कीर्ति

हे ईश्वर ! मेरी काया पृथ्वी बढ़ न हो.

किसी मोह में आबद्ध न हो.

सर्वत्र निर्बंध हो.

जब तक रुके उसके सात्विक प्रबंध हों.

क्योंकि उच्चाटित

और आबद्ध आत्मा को

कहाँ मिलेगा कोई घर ?

आधार आयाम या आयतन ,

मोह राज्य से कैसे होगा ,अभिनिष्क्रमण या निष्कासन ?

किसी भी आकर्षण या विकर्षण

से परे होकर पञ्च तत्वों का ऋण

भी तो अभी उतारना है.

क्यों कि मैं पहले तत्वों की हूँ

फ़िर अस्तित्व की हूँ .

अग्नि -तत्व सात्विक कर्मों की ऊर्जा से,

वायु तत्व अप्रदूषित वायु मंडल से,

पृथ्वी तत्व --सहनशीलता

उदार वृत्ति से ,

आकाश तत्व -शब्दायमान ॐ तत्व ओंकार

मृदुल ऋत वाणी और गायत्री से ,

जल -तत्व पोषण ,

तृप्ति और दीनों को आर्द्र भाव से.