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पता नइखे / सरोज सिंह

कहीं भगवान के पता नइखे
कहीं इंसान के पता नइखे
सगरो अन्हियार बढल बा
सुरुज-बान के पता नइखे
पोथी पढ़ पंडित बन गईले
जिए-भर ग्यान के पता नइखे
कबले होई आस के अंजोर
ऊ बिहान के पता नइखे
इहाँ मुर्दा बनल सब अदमी
अब समसान के पता नइखे
बदलत बा इंसान के फितरत
कहीं ईमान के पता नइखे
बाड़ खा गईल सगरो खेत
उ निगहबान के पता नइखे
जे उगवलस खेत में सोना
ओकरे धन-धान के पता नइखे
जेहमे कब्बो करज न उगे
ऊ सिवान के पता नइखे