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पदचाप / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'


आ रही पदचाप
बढ़ गई धड़कनें
लिखने लगी हवा
सुगन्धों से नाम ।
टूट गए रोष-भरे
सभी सम्बन्ध
निर्बल सिद्ध हो गए
पुरातन छन्द,
सुधियों की फिर से
घिरने लगी शाम।
लौट आए
तट पर
ले खाली नाव
टीस उठे बार-बार-बार
पुराने घाव
दिशाओं ने खींची
हवाओं की लगाम ।
घिरकरके
नयनों में
बरस गए घन
बाट चुप,
हो गया है –
भरा-भरा मन
चलते ही चलते
उम्र हुई तमाम ।