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पपीहो / कन्हैया लाल सेठिया

मांग जीवण री नहीं आ
एक निकमी रागळी है ?

ताल सरवर सै भरया म्हे
कद करी कोई मनाही ?
ईं पंखेरू नै पड़ी लत
ओ रटै पी पी ईंयाईं,

रात दिन गिगनार बरस्यो
जद करै हो के कमाई ?
बादळो मनवार कर सी
मन मतै बणग्यो जंवाई,

जद जियां बरस्यो बियां ही
म्हे लियो सै पैट भर पी,
ओ करया नखरा अणूंता
ज्यूं सुरग रो बापड़ो जी,

अै ढफळ भूंडो दिखासी
छांट दूजी सागली है,
मांग जीवण री नहीं आ
एक निकमी रागळी है।

मांग जीवण री सदा ही
कुण कवै आ रागळी है ?

ओळमै जोगी जगत में
पीड़ दूजां री सदा ही
ईसको ई बात रो ही
आण क्यों कोई निभाई ?

तूं अड़ीकै छांट बी री
भोत दौरी जोगवाई,
लाळ टपकै बात करतां
बो करै जग के समाई ?

पण न ल्या चातग उदासी
मैं मरम री बात जाणो,
मैं दुखी थारै जिस्यो ही
मैं दरद दिल रो पिछाणो,

के करै पंछी पपीहो
हिव बसै तिस बावळी है,
मांग जीवण री सदा ही
कुण कवै आ रागळी है ?