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परळै / कन्हैया लाल सेठिया

कोनी रयो अबै
जिनगानी में मिठास,
कठै है नेणां में हेत
उछाळै सगळा
एक दूजै - पर रेत
लागै हरेक नै
आ’र पड़ग्यो
अणसमतो भार, ंिकंयां पड़सी पार ?
कठै लेवै कोई बिसांई ?
चालै
भीड़ रो रेळो
कुण सुणै हेलो ?
दे’सी अब धाप्योड़ी धरती छेह
ळांगसी संतापीज्योड़ समदर कार
डूबसी हिंयाळो
रै’सी खाली अणडूब्यो गिगनार
हुज्यासी लोप सिरजण रो बीज
कोनी लाधै अबकाळै मनु नै
कोई शिला, कोइ सरधा
मनैं तो लागै
हुसी अबै सिस्टी रै कोई ढूजै पिंड में
फेर नुंई रचणा ।