परहित / सुप्रिया सिंह 'वीणा'

मन छै पागल आबेॅ तेॅ करें नै गुमान सुनी लेॅ।
है शरीर छै बस चार दिन के मेहमान सुनी लेॅ।
तोता-खोता छोड़ी उड़तौं एक दिन सुनी लेॅ।
ज्ञान कर्मो में राखोॅ अपनोॅ ध्यान सुनी लेॅ।

जिनगी में फूल दान के महिमा बरोबर छै।
कोय नै एैलोॅ छै दुनिया में कांटा बनी गड़ै लेॅ।
जीवन में खुशी केॅ बाँटोॅ ध्यान बस अतना।
खुद्दे संसार करथौ तोरोॅ सम्मान सुनी लेॅ।

कोठा, गाड़ी, बंगला, तोरा संग कहाँ सें जैतों।
बोली में अमृत रस घोलें बस ई बात सुनी लेॅ।
तोंय जे करलह व्यवहार, तोरोॅ बाद वहेॅ रहथौं।
प्रेम सें तेॅ बस में होय छै भगवान सुनी लेॅ।

मन तोंय आबेॅ छोड़ी दहिं गुमान सुनी लेॅ।
अपनोॅ कर्म के साक्षी तोहीं, पीछु मुड़ी-मुड़ी देखोॅ।
हर आस आरो विश्वास के ज्योति बनी देखोॅ।
सब के दुख हरना छै आपनोॅ सुख दान करी केॅ।
जग में परहित करै जें सच में वहेॅ महान सुनी लेॅ।
छै जग में अखम्मर ऋषि दधीचि के पावन कथा।
देवोॅ लेली देलकै देहदान जग कल्याण सुनी लेॅ।

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