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परिंदे / केशव

मैंने कोशिश की है
तुम्हारे साथ बहने की
और उनके दुख सहने की
जो देख रहे हैं मुझे
किसी न किसी कोण से
इस मोड़ पर रुके हुए

पकड़ा दिया था अपना कोई छोर
दिया था अपनी आत्मा का एक स्पर्श
कि जिन सँदर्भों में जुड़ा हूँ सबके साथ
पा लूँगा उनमें कोई अर्थ
कोई एक राह

गहरा होगा
अँदर ही अँदर कोई भाव
जो ले जायेगा हमें
एक दूसरे में बेरोक
ताकि दर्द में भी
पा सकें एक-दूसरे को
कहें न चाहे कुछ
पर एक दूसरे में
परिन्दों की तरह आ-जा सकें

पर कच्चे रँग की तरह
उड़ता रहा वक्त
नि:शब्द रहा पड़ा दर्द
खोली न किसी ने कोई खिड़की
जिन्दगी के धुआँते अलाव के पीछे बैठे
पोंछते रहे आस्तीन से आँखें

पल जो हमारे निकट थे
और पारदर्शी
कि बड़ी आसानी से
उनसे झाँक सकते थे एक दूसरे में
बह गये बिन आहट
पेड़ जिन्दगी का अब सूना
अकेला खड़ा
पत्रहीन होता
पेड़ों के इस सघन जंगल में

फुफुसाया कान में कोई
खोले रखो खिड़कियाँ
परिन्दे
भटक जाया करते हैं अक्सर.