Last modified on 11 मार्च 2021, at 23:30

परिचय / मोहन अम्बर

ताने-बाने का हर धागा टूट रहा है जोड़ रहा हूँ,
और पसीने से लिख-लिखकर गीत-सँदेशे छोड़ रहा हूँ।

नहीं चाहिए चाँद सितारे,
नहीं चाहिए घन कजरारे,
ऋतु-पति की परवाह नहीं है,
सावन की भी चाह नहीं है,

गीत बनाने को सावन की दर्द-गगरिया फोड़ रहा हूँ,
और पसीने से लिख-लिखकर गीत सँदेशे छोड़ रहा हूँ।

लहर-लहर पर लिखी कहानी,
यहाँ मिटीं अनगिनत जवानी,
लेकिन फिर भी तूफानों में,
आस भरे हूँ अरमानों में,

अनदेखा तट, भटकी नैया, इनकी दूरी तोड़ रहा हूँ,
और पसीने से लिख-लिखकर गीत सँदेशे छोड़ रहा हूँ।

चलता हूँ काँटे चुभते हैं,
रूकता हूँ सपने लुटते हैं,
ऐसी उलझन साथ लिए हूँ,
पर हिम्मत का जाम पिए हूँ,

जिस पर चरण भटक जाते हैं वह पगडण्डी मोड़ रहा हूँ।
और पसीने से लिख-लिखकर गीत सँदेशे छोड़ रहा हूँ।