यह युगों की साधना का
आज क्या परिणाम है ?
मैं तुम्हारे रूप का साधक
जोहता शोभा सदा अपलक,
पर, गया मिट सुख-सबेरा
ज़िन्दगी की शाम है !
स्वप्न में तुमको बुलाया था,
कक्ष अंतर का सजाया था
पर, युगों से स्नेह-निर्झर
बह रहा अविराम है !
श्रवण आहट पर टिके मेरे,
नयन-युग पथ पर झुके मेरे,
पर, नहीं आभास तक का
आज किंचित नाम है !
1949