जब तक राजनीति है तब तक शस्त्र रहेंगे
और शांति की वार्ता भी चलती जाएगी,
देश-देश के कर्ता कोई बात कहेंगे,
देश-देश की जनता उसको दुहराएगी ।
जनता से ही चुन-चुन कर भारी सेनाएँ
बना करेंगी और युद्ध भी हुआ करेंगे,
सेनानायक लगे-लगे रहेंगे दाएँ-बाएँ
देशभक्त कहलाएँगे जो वहाँ मरेंगे ।
लड़ने वाले या रण का संचालन करने
वाले कहा करेंगे हमें शांति ही प्रिय है,
कोई नहीं कहेगा भूले भी हम मरने
और मारने को है,- यों ही रण सक्रिय है ।
शांति कहाँ है, यह तो केवल मुहावरा है,
परेशान क्यों हो, इस में क्या अर्थ धरा है।
रचनाकाल : 07 जनवरी 1977, भोपाल