Last modified on 7 दिसम्बर 2011, at 17:26

पश्चाताप / रामनरेश त्रिपाठी

सरके कपोल के उजाले में दिवस, रात
केशों के अँधेरे में निकल भागी पास से।
संध्या बालपन की युवापन की आधी रात
मैंने काट डाली क्षणभंगुर विलास से॥
श्वेत केश झलके प्रभात की किरन-से तो
आँखें खुलीं काल के कुटिल मदहास से।
मेरे करुनानिधि का आसन गरम होगा
कौन जाने कब मेरे शीतल उसास से॥