घुलनशील हैं रक्त में...आदिम प्रवृत्तियां
सभ्यता की आड़ में
मन जैसी वस्तु अवस्थित हैं कहीं
मज्जा, अस्थियां और त्वचा के मध्य
मस्तिष्क की कोशिकाओं में
पुरातन युग उर्वर रहा
शिकार और शिकारी का
पत्थरों का नुकीलापन
अदृश्य हुआ देह की कोमलता में
सभ्य होना कर गया कठोर
भाव के मृदुल तंतु
जिह्वा सीख गयी बोलना
मधुर मधुर वाणी
कंठ रेतते हाथों से
पीठ को कोई क्षोभ नहीं रहा
मृत्यु ढोते मानस का
आदिम युग के आदम से
इस युग के मानव तक
केवल आवरण गढ़े गये
नकार दिया गया मानव होना ही
विस्मृत कर दिया गया
कि पहली शर्त है मानव होना
बुद्ध होने की