न आसमान उतना नीला है अब
न उतनी नीली है
परत पहाड़ियों को ।
एक हल्ला बोलते शहर
की चिड़ियाँ,
कभी बैठती हैं किसी तार पर,
कभी उड़ने लगती
हैं झाड़ती हुई
धूल की परत-सी
घबराहट,
पंखों से !
न आसमान उतना नीला है अब
न उतनी नीली है
परत पहाड़ियों को ।
एक हल्ला बोलते शहर
की चिड़ियाँ,
कभी बैठती हैं किसी तार पर,
कभी उड़ने लगती
हैं झाड़ती हुई
धूल की परत-सी
घबराहट,
पंखों से !