पानी का स्वरूप ही शीतल है
बाग में नल से फूटती उजली विपुल धार
कल-कल करता हुआ दूर-दूर तक जल
हरी में सीझता है
मिट्टी में रसता है
देखे से ताप हरता है मन का, दुख बिनसता है।
पानी का स्वरूप ही शीतल है
बाग में नल से फूटती उजली विपुल धार
कल-कल करता हुआ दूर-दूर तक जल
हरी में सीझता है
मिट्टी में रसता है
देखे से ताप हरता है मन का, दुख बिनसता है।