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पालक / हरजीत सिंह 'तुकतुक'

हमारे ऑफ़िस का,
सबसे तेज वाहन चालक।
पिज़्ज़ा पास्ता खाने वाला बालक।

हमने देखा,
घर से डिब्बा ला रहा है।
पिछले पाँच दिन से पालक खा रहा है।

हमने पूछा,
क्या हुआ मेरे क्रिस गेल।
क्यों रवि शास्त्री की तरह रहा है खेल।

वो बोला,
हो गयी है शादी।
पर आप इतने अचरज में क्यों भा जी।

आपको भी तो बुलाया था।
और सारा रायता,
आप ही ने तो फैलाया था।

हमने कहा,
बालक, तेरा तात्पर्य, हमें समझ नहीं आया।
तब उसने हमें समझाया।

वो बोला,
आपने ही,
शुरू किया था बवाल।

जब मेरी बीवी को कहा था।
कि बालक का रखना ख़याल।
वो रख रही है।

इतना तो मुझे मेरी माँ ने नहीं सताया।
मुँह सूंघ कर चेक करती है,
कि पिज़्ज़ा तो नहीं खाया।

हमने कहा,
निरीह बालक,
पर रोज़ पालक।

वो बोला,
पिछले हफ़्ते उसने कहा था।
थोड़ा धनिया ले आना।

मैं धनिये की,
ले गया पाँच पत्ती।
उसने लगा दी मेरी बत्ती।

कहने लगी,
धिक्कार है तुम्हारी सोच पर।
बेकार तुम्हारी जवानी है।

धनिये से,
सर्जिकल स्ट्राइक नहीं करनी है।
चटनी बनानी है।

मैंने डिसाइड किया।
कि गलती नहीं दोहराऊँगा।
थोड़ा बोलेगी तो भी ज़्यादा लाऊँगा।

पिछले हफ़्ते,
उसने मंगाई थी पालक।
पाँच किलो ले आया आपका बालक।

बस उसी जुर्म की सजा पा रहा है।
पिछले पाँच दिन से,
सुबह शाम पालक खा रहा है।