अर्द्द्शती की पावन बेला, कर रही पुकार, स्वागत को तैयार,
बापू मेरे आओ देखो, जन मानस का प्यार।
राष्ट्रपिता जननायक गांधी, सादा जीवन पहनी खादी,
गावों में बसता है भारत, उनके हैं उदद्गार।
मोहन में सम्मोहन ऐसा, छोड़ चले सब काम न दूजा,
मातृभूमि पर जान निछावर, पुतलिबाई के संसार।
'करमचन्द' ने कार्य सिखाया, गीता का उपदेश,
सच्ची लगन ढाल बन गयी, बदल गया परिवेश।
'बा' ने साथ निभाया ऐसे, सोने में सुघन्ध हो जैसे,
मृग तृष्णा में कभी न भूलें माँ का यह सम्मान।
अर्दशती की पावन बेला, स्वागत को तैयार,
बापू मेरे आओ देखो, जन मानस का प्यार।