अपनी स्नेहिल गोद में उठा
तृप्ति की कैसी हिलोरें देते हो
पितामह !
जन्मांतरों के पार की
कहीं गहरे मुंदी पड़ी
अचेत में अंकित सुधियाँ
बेसुध कर रहीं लहरें
काल-अंतराल ही पिघल कर
लहर-लहर हो जाता है
अनंत ही अनंत को गाता है !...
अपनी स्नेहिल गोद में उठा
तृप्ति की कैसी हिलोरें देते हो
पितामह !
जन्मांतरों के पार की
कहीं गहरे मुंदी पड़ी
अचेत में अंकित सुधियाँ
बेसुध कर रहीं लहरें
काल-अंतराल ही पिघल कर
लहर-लहर हो जाता है
अनंत ही अनंत को गाता है !...