जब चुकने लगते हैं पिता
माँ हो जाती है प्रासंगिक।
माँ धीरे-धीरे हो जाती है
दादी या नानी।
वर्षों के अनुभवों के बावज़ूद
पिता रह जाते हैं
महज़ पिता।
जब चुकने लगते हैं पिता
माँ हो जाती है प्रासंगिक।
माँ धीरे-धीरे हो जाती है
दादी या नानी।
वर्षों के अनुभवों के बावज़ूद
पिता रह जाते हैं
महज़ पिता।