याद है
बचपन में खाए
पिता के जबर हाथों का तमाचा
ऐसे मारते थे पिता
कि मारे और रोने भी न दें
पिता की मार से
सीख ली रूलाई को गले में गुटकने की कला
शुक्रगुज़ार हूँ पिता
कि ज़िन्दगी में सबसे ज़्यादा काम आई यह कला
याद है
बचपन में खाए
पिता के जबर हाथों का तमाचा
ऐसे मारते थे पिता
कि मारे और रोने भी न दें
पिता की मार से
सीख ली रूलाई को गले में गुटकने की कला
शुक्रगुज़ार हूँ पिता
कि ज़िन्दगी में सबसे ज़्यादा काम आई यह कला