तुम कहाँ हो?--मैंने
आज
ठीक तुम्हारी ही तरह
कंकर फेंके थे । लेकिन
तालाब था
कि ख़ामोश ही रहा । नीले
आसमान की तरह उसका पानी ।
एकदम लहर-हीन ।
इस वक़्त शाम है । ख़ूबसूरती की मिसाल
हो जैसे । और
तुम नहीं हो । मेरी
कविताएँ अब भी तुम्हारे लिए
जगह छोड़कर चलती हैं ।
(रचनाकाल :25 नवम्बर 1972)