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पुकार / वेणु गोपाल

तुम कहाँ हो?--मैंने


आज

ठीक तुम्हारी ही तरह

कंकर फेंके थे । लेकिन


तालाब था

कि ख़ामोश ही रहा । नीले

आसमान की तरह उसका पानी ।

एकदम लहर-हीन ।


इस वक़्त शाम है । ख़ूबसूरती की मिसाल

हो जैसे । और

तुम नहीं हो । मेरी


कविताएँ अब भी तुम्हारे लिए

जगह छोड़कर चलती हैं ।


(रचनाकाल :25 नवम्बर 1972)