जिस तरह
पैसे और पानी का
कोई रंग नहीं होता
उसी तरह
पुरस्कार-सम्मान का भी
कोई रंग नहीं होता
पुरस्कार सम्मान
कहीं से भी मिले
ले लेना चाहिए
पुरस्कार सम्मान
लेते समय
विचार धारा को
दर किनार कर देना चाहिए
पुरस्कार-सम्मान
किसी सेठ साहूकार का हो
या अकादमी सरकार का
चाहे दे रही हो कोई विदेशी कम्पनी
अन्तोगत्वा हमारी
रचनात्मकता का सम्मान ही है
पुरस्कार -सम्मान
कंचन की तरह पवित्र होते है
कहा भी है किसी कवि ने
परयो अपावन ठोर पर
कंचन तजे ना कोय