पुरानी यादें / मार्गस लैटिक

मातृभूमि!!
मेरी टूटी हुई कश्ती!!
मैं प्रकाश ढूँढ़ता हूँ
और सिर्फ तुमको पाता हूँ!
पथरीले खेत!
लाल गीली मिटटी...
वो नींबू की कतारें...
ऐसे जैसे किसी सुगंधित, कुसुमित
वक्ष ने मुझे गोद में बैठा दिया हो
इसी लम्हे मुझे
आगोश में लिया हो...
क्या यही लम्हा...
मेरा मक्खी बचपन
महकता, उमड़ताहै?

तुम बसंत बनोगे...
और झुलसती सड़कों पर
यहाँ से बहुत दूर...
अँधेरों से मिलोगे
और मेरे प्रिये
वहाँ तुम रक्तरंजित
शहीद नहीं होगे...
तुम सफेद मोमबत्तियों
की लौ के सिवा
कुछ और होगे...
इतना तय है...

मगर तुम्हारे भीतर की आस
तुमसे कहती है कि यथार्थ
ये कभी था ही नहीं...
और हम सब को
ये मालूम है
कि तुम्हारा
सोचना क्या है!
मगर हम सब ने
सच कहें तो ऐसा
कभी नहीं सोचा...
हम...
वक्त के निशाँ है
हम सब के सब...
और हमें वक्त मिला ही नहीं...
इसीलिए
हम भरोसा करते हैं

नाभरोसे में
अपने से भी ज्यादा

अँग्रेज़ी से अनुवाद : गौतम वसिष्ठ

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.