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पुल / अशोक शुभदर्शी

चढ़ी केॅ
खिलौना केॅ पुलोॅ पर
उतरी जाय छै बच्चा
सपना के संसारोॅ में

चढ़ी केॅ
कविता कॅे पुलोॅ पर
उतरी जाय छै
कुछ्छु लोग
ई पार, समझोॅ के दुनिया में

चढ़ी केॅ
धरमोॅ के पुलोॅ पर
ठहरी जाय छै लोग
पुलोॅ पर ही।