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पूरे चाँद की रात / विजय कुमार सप्पत्ति

आज फिर पूरे चाँद की रात है;
और साथ में बहुत से अनजाने तारे भी है...
और कुछ बैचेन से बादल भी है...

इन्हे देख रहा हूँ और तुम्हे याद करता हूँ..

खुदा जाने;
तुम इस वक्त क्या कर रही होंगी…..

खुदा जाने;
तुम्हे अब मेरा नाम भी याद है या नही..

आज फिर पूरे चाँद की रात है!!!