मन अब जो मांगता है
यदि वह नहीं होता
तो उदास होता है
जो मिलने का नहीं
अगर वही मांगा
तो मांगने वाले ने
चेत अधर में टांगा
आसरे आसरे
जी हताश होता है ।
इन्द्रधनुष कितने
इच्छाओं के
बन बन कर मिटते हैं
साँवली घटाओं के ।
कीचड़ ही पैरों के
आसपास होता है ।
मन अब जो मांगता है
यदि वह नहीं होता
तो उदास होता है
जो मिलने का नहीं
अगर वही मांगा
तो मांगने वाले ने
चेत अधर में टांगा
आसरे आसरे
जी हताश होता है ।
इन्द्रधनुष कितने
इच्छाओं के
बन बन कर मिटते हैं
साँवली घटाओं के ।
कीचड़ ही पैरों के
आसपास होता है ।